बसपा की विशाल रैली से क्यों घबरा गये अखिलेश -क्या PDA पर आ गया खतरा..

NGV PRAKASH NEWS की विशेष रिपोर्ट

📰 बसपा ने दिखाई ताकत, सपा ने किया पलटवार — अखिलेश यादव पर क्यों बढ़ा राजनीतिक दबाव

लखनऊ, 10 अक्टूबर 2025 | NGV PRAKASH NEWS

उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने मिशन 2027 की तैयारी के तहत राजधानी लखनऊ में जोरदार शक्ति प्रदर्शन किया, तो समाजवादी पार्टी (सपा) ने तुरंत पलटवार करते हुए बसपा पर भाजपा से “अंदरूनी सांठगांठ” के गंभीर आरोप लगाए। दोनों दलों की इस सीधी टक्कर ने प्रदेश की राजनीति में नए समीकरणों का संकेत दे दिया है।

बसपा का पावर शो — सपा पर सीधा निशाना

कांशीराम पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित महारैली में बसपा सुप्रीमो मायावती ने हजारों कार्यकर्ताओं के बीच सपा पर तीखे हमले बोले। उन्होंने कहा कि सपा ने पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) वर्गों को बार-बार छलने का काम किया है। मायावती ने सपा पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि “अब जनता इन चालों को समझ चुकी है।”

गौर करने वाली बात यह रही कि मायावती ने भाजपा सरकार की कुछ नीतियों — खासतौर पर दलित स्मारकों के रखरखाव — की प्रशंसा की। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बसपा का यह रुख भाजपा पर सीधे हमले से बचते हुए सपा को घेरने की रणनीति का हिस्सा है।

सपा का पलटवार — ‘अंदरूनी मिलीभगत’ का आरोप

बसपा के इस शक्ति प्रदर्शन के तुरंत बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पलटवार किया। उन्होंने आरोप लगाया कि बसपा और भाजपा के बीच अंदरूनी सांठगांठ जारी है और मायावती जनता को भ्रमित करने की कोशिश कर रही हैं। अखिलेश ने कहा, “जो लोग अत्याचार करने वालों के प्रति नरम रुख रखते हैं, वे असल में बदलाव की लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं।”

अखिलेश यादव ने यह भी दोहराया कि बसपा भाजपा की “बी-टीम” की तरह काम कर रही है और विपक्ष की एकजुटता में रोड़ा बन रही है।

बदलते समीकरणों में सपा पर दबाव

बसपा की महारैली में जुटी भीड़ और मायावती के बदले हुए तेवरों ने सपा के राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। विश्लेषकों के मुताबिक, बसपा जिस तरह से बूथ स्तर पर संगठन मजबूत कर रही है और भाजपा पर सीधा हमला करने से बच रही है, उससे सपा का परंपरागत वोट बैंक खिसकने की आशंका बढ़ गई है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बसपा का यह कदम सपा के लिए सीधी चुनौती है। एक ओर सपा भाजपा से मुकाबले की रणनीति बना रही है, वहीं दूसरी ओर बसपा विपक्षी वोटों में सेंध लगाने की तैयारी में है। यही वजह है कि अखिलेश यादव पर अब दोहरी चुनौती आ गई है — भाजपा को घेरने की और बसपा के बढ़ते प्रभाव को रोकने की।

मिशन 2027 की जंग शुरू

मायावती की महारैली और अखिलेश के तीखे बयानों से साफ है कि मिशन 2027 के लिए राजनीतिक जमीन अभी से तैयार की जा रही है। एक तरफ बसपा अपनी पुरानी सामाजिक इंजीनियरिंग को नए सिरे से चमका रही है, तो दूसरी ओर सपा को विपक्ष की अगुवाई बनाए रखने के लिए और अधिक आक्रामक होना होगा।

आगामी महीनों में यह टकराव और तेज होने की उम्मीद है, क्योंकि दोनों दल न केवल भाजपा को चुनौती देना चाहते हैं, बल्कि एक-दूसरे को भी पीछे छोड़कर सत्ता की दौड़ में बढ़त हासिल करने की कोशिश में हैं।

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