कुत्तों, बंदरों एवं छुट्टा जानवरों का आतंक ; प्रशासन की नाकामी या

Gyan Prakash Dubey

सड़कों पर बेकाबू जानवरों का आतंक: इंसानों के लिए खतरा या प्रशासन की नाकामी?

हमारे शहरों और गांवों की गलियों में आजकल एक अजीब किस्म का आतंक देखने को मिल रहा है। ये आतंक किसी अपराधी गिरोह का नहीं, बल्कि बेजुबान जानवरों का है, जो हर रोज लोगों की परेशानी का कारण बन रहे हैं। कुत्तों, बंदरों और छुट्टा जानवरों का बढ़ता प्रकोप अब सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि जानलेवा खतरा बन चुका है।

पहला आतंक: झुंड में घूमते खतरनाक कुत्ते

शहरों की गलियों में आवारा कुत्तों का झुंड अब एक आम समस्या बन गया है। ये कुत्ते रात में शोर मचाने, गाड़ियों का पीछा करने और लोगों पर हमला करने से लेकर बच्चों और बुजुर्गों को काटने तक का काम कर रहे हैं। कई मामलों में तो ये जानलेवा भी साबित हुए हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि नगर पालिका और प्रशासन इस समस्या को हल करने के बजाय इसे नजरअंदाज कर रहा है। टीकाकरण और नसबंदी योजनाएं केवल कागजों तक सीमित रह गई हैं, जबकि आम जनता इनका खामियाजा भुगत रही है।

दूसरा आतंक: छतों और गलियों में उछलते बंदर

बंदरों का आतंक अब केवल धार्मिक स्थलों तक सीमित नहीं रहा। कई शहरों और कस्बों में बंदरों ने घर की छतों, गलियों और बाजारों को भी अपनी नई कॉलोनी बना लिया है। वे राह चलते लोगों के हाथ से सामान छीन लेते हैं, घरों में घुसकर अनाज बर्बाद करते हैं और हमला तक कर देते हैं। बुजुर्ग और महिलाएं इनसे सबसे ज्यादा परेशान हैं। प्रशासन द्वारा बंदरों को पकड़ने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, जिससे यह समस्या लगातार बढ़ रही है।

तीसरा आतंक: छुट्टा जानवर और सड़कों पर मंडराता खतरा

गाय, सांड और अन्य छुट्टा जानवर अब सड़कों पर गंभीर दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं। ये जानवर रात में सड़क पर अचानक आ जाते हैं, जिससे बाइक और कार सवारों की जान जोखिम में पड़ जाती है। कई दुर्घटनाओं में लोग अपनी जान तक गंवा चुके हैं। गोशालाओं की कमी, प्रशासनिक लापरवाही और पशुपालकों की गैर-जिम्मेदारी के कारण यह समस्या विकराल होती जा रही है।

समाधान क्या है?

इस समस्या का समाधान केवल प्रशासन की इच्छाशक्ति और नागरिकों की जागरूकता से ही संभव है।

  1. आवारा कुत्तों के लिए नसबंदी और टीकाकरण अभियान को प्रभावी बनाया जाए।
  2. बंदरों को जंगलों या सुरक्षित स्थानों पर भेजने के लिए विशेष योजना बनाई जाए।
  3. छुट्टा जानवरों के लिए गोशालाओं की संख्या बढ़ाई जाए और सड़कों पर घूमने वाले जानवरों को तत्काल हटाने की व्यवस्था की जाए।

अगर अब भी इन समस्याओं का समाधान नहीं निकाला गया, तो आने वाले समय में यह सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि एक गंभीर आपदा का रूप ले सकती हैं।

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  • Gyan Prakash Dubey

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