
” मौलाना के बयान पर पर भड़के शमी के भाई, बोले- ये तो कठमुल्ला है!
नई दिल्ली | NGV PRAKASH NEWS
टीम इंडिया के स्टार गेंदबाज मोहम्मद शमी एक बार फिर कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं। इस बार वजह है रमज़ान के दौरान उनका रोज़ा न रखना। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने शमी को “अपराधी” तक कह डाला। लेकिन अब इस विवाद पर उनके छोटे भाई मोहम्मद जैद ने करारा जवाब दिया है।
“सफर में रोज़े की छूट, फिर ये विवाद क्यों?”
मोहम्मद जैद ने मीडिया से बात करते हुए कहा, “ये बयान बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। हर कोई जानता है कि सफर के दौरान रोज़ा रखने की बाध्यता नहीं होती। मौलाना को इतनी भी जानकारी नहीं? क्या वे शमी भाई को डिमोटिवेट करना चाहते हैं?” उन्होंने सवाल उठाया कि जब पाकिस्तान के खिलाफ मैच में शमी पर गलत आरोप लगाए जाते हैं, तब भी ट्रोलिंग होती है, और अब ये नया मुद्दा खड़ा कर दिया गया है।
“ये मौलाना नहीं, कठमुल्ला है!”
बंगाल के लिए घरेलू क्रिकेट खेलने वाले तेज़ गेंदबाज मोहम्मद जैद यहीं नहीं रुके। उन्होंने मौलाना को “कठमुल्ला” करार देते हुए कहा, “हमें अपने धर्म को ऐसे कट्टरपंथियों से बचाने की जरूरत है। ये फर्जी मौलाना हैं, जिन्हें खुद इस्लाम की सही जानकारी नहीं। जिसने मजहबी किताबें पढ़ी होंगी, वो शमी भाई के सपोर्ट में होगा।”
उन्होंने आगे तंज कसते हुए कहा, “2017 में जब पूरी पाकिस्तानी टीम रमज़ान के दौरान कॉफी पी रही थी, तब किसी मौलाना ने सवाल नहीं उठाया। फिर अब ही क्यों?”
मोहम्मद शमी के बचपन के कोच बदरुद्दीन सिद्दिकी ने भी इस विवाद पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “आपको फख्र होना चाहिए कि आपके धर्म का बेटा देश का नाम रोशन कर रहा है। अगर कोई हिंदू क्रिकेटर व्रत रखकर नहीं खेल सकता, तो कोई रोज़ा रखकर कैसे खेलेगा?”
सोशल मीडिया पर कैसे उठा विवाद?
दरअसल, चैंपियंस ट्रॉफी 2025 के दौरान भारत अपने मैच यूएई में खेल रहा है। भारत 9 मार्च को न्यूजीलैंड के खिलाफ फाइनल खेलेगा। इससे पहले एक मैच के दौरान शमी एनर्जी ड्रिंक पीते नजर आए, जिसके बाद कुछ लोगों ने उन्हें रोज़ा तोड़ने का दोषी ठहरा दिया। इस पर मौलाना बरेलवी ने बयान दिया कि “रोज़ा न रखकर शमी ने शरीयत का उल्लंघन किया है, और उन्हें अल्लाह को जवाब देना होगा।”
क्या कहती है शरीयत?
धार्मिक विद्वानों के अनुसार, इस्लाम में “सफर” (यात्रा) के दौरान रोज़े की छूट दी गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि मौलाना बरेलवी का बयान धार्मिक नियमों पर आधारित है या फिर किसी और मकसद से दिया गया है?
निष्कर्ष
धर्म को निजी आस्था मानने वाले लोग इस विवाद को गैर-जरूरी बता रहे हैं। खेल के मैदान में मेहनत और फिटनेस अहम होती है, न कि कोई बाहरी दबाव। ऐसे में सवाल यह है कि क्या खेल को धर्म के नाम पर बांटने की कोशिश की जा रही है?
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