
Gyan Prakash Dubey
समाज किस ओर जा रहा है? मासूमों पर बढ़ते अत्याचार और हमारी जिम्मेदारी
आज हम तकनीकी और विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं, लेकिन क्या हमारी नैतिकता भी उसी गति से आगे बढ़ रही है? जब एक दो साल की मासूम बच्ची हैवानियत का शिकार होती है, जब 80 साल का बुजुर्ग—जो समाज का मार्गदर्शक होना चाहिए—ऐसा घिनौना कृत्य करता है, तो यह सोचने पर मजबूर करता है कि हमारा समाज आखिर किस दिशा में जा रहा है?
रोज़ अखबारों और न्यूज़ चैनलों में ऐसी खबरें देखने को मिलती हैं जो इंसानियत को झकझोर देती हैं। नाबालिग बच्चों के साथ यौन अपराध बढ़ते जा रहे हैं, और यह केवल कानून-व्यवस्था की विफलता नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक मूल्यों और मानसिकता पर भी गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। सवाल यह उठता है कि आखिर इस बढ़ते अपराध के पीछे कौन जिम्मेदार है? क्या यह सिर्फ अपराधियों की विकृत मानसिकता का नतीजा है, या समाज, मोबाइल क्रांति, टीवी, इंटरनेट और पारिवारिक माहौल भी इसके लिए जिम्मेदार हैं?
मोबाइल और इंटरनेट की भूमिका: वरदान या अभिशाप?
आज हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल है, और इंटरनेट की पहुंच गांव-गांव तक हो चुकी है। यह तकनीकी क्रांति एक ओर विकास का प्रतीक है, तो दूसरी ओर इसके दुष्परिणाम भी चिंताजनक हैं।
1. पोर्नोग्राफी की आसान उपलब्धता
इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी बेहद आसानी से उपलब्ध है। यह न केवल युवाओं बल्कि अधेड़ और बुजुर्गों तक को प्रभावित कर रही है। शोध बताते हैं कि पोर्नोग्राफी का अत्यधिक सेवन व्यक्ति की मानसिकता को विकृत कर देता है और उसे महिलाओं को मात्र ‘वस्तु’ समझने की आदत डाल देता है।
2. सोशल मीडिया पर अश्लीलता और हिंसा
आजकल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हिंसा और अश्लीलता को खुलेआम परोसा जा रहा है। ऐसे कंटेंट किशोरों और युवाओं की मानसिकता को दूषित कर रहे हैं, जिससे अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
3. साइबर अपराध और बच्चों की असुरक्षा
बच्चे बिना किसी निगरानी के मोबाइल और इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। नतीजतन, वे अश्लील कंटेंट, गलत संगति और ऑनलाइन यौन अपराधों का शिकार बन सकते हैं।
टीवी और फिल्मों का असर
टीवी, वेब सीरीज और फिल्मों में बढ़ती अश्लीलता और हिंसा समाज पर गहरा प्रभाव डाल रही है।
1. महिलाओं को ‘वस्तु’ की तरह दिखाना
आजकल की फिल्मों में महिलाओं को केवल आकर्षण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे समाज में उनके प्रति सम्मान घटता जा रहा है।
2. अपराध को ‘महिमामंडित’ करना
कई फिल्मों में अपराधियों को हीरो की तरह दिखाया जाता है, जिससे अपराध को एक ‘रोमांचक’ चीज़ के रूप में पेश किया जाता है। यह युवा पीढ़ी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
परिवार और संस्कारों की गिरावट
अगर समाज को सही दिशा में मोड़ना है, तो इसकी शुरुआत घर से करनी होगी।
1. बेटों को अच्छे संस्कार देना जरूरी
अक्सर देखा जाता है कि परिवार में बेटियों को नैतिकता और मर्यादा का पाठ पढ़ाया जाता है, लेकिन बेटों को नहीं। अगर बचपन से ही लड़कों को महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाए, तो इस तरह के अपराधों में गिरावट आ सकती है।
2. माता-पिता की लापरवाही
बच्चों की गतिविधियों पर ध्यान न देना, उन्हें असीमित इंटरनेट एक्सेस देना, और उनके दोस्त कौन हैं, इस पर ध्यान न देना—ये सभी बातें गंभीर अपराधों की ओर धकेल सकती हैं।
3. घरेलू हिंसा का असर
अगर कोई बच्चा अपने घर में महिलाओं पर अत्याचार होते देखता है, तो वह इसे ‘सामान्य’ मान सकता है और आगे चलकर खुद भी वैसा ही व्यवहार कर सकता है।
समाज की भूमिका और समाधान
1. पीड़िता को दोष देना बंद करें
अक्सर देखा जाता है कि जब कोई यौन अपराध होता है, तो समाज पीड़िता के कपड़े, समय और उसके चरित्र पर सवाल उठाने लगता है। यह मानसिकता अपराधियों का मनोबल बढ़ाती है।
2. सख्त कानून और त्वरित न्याय
दुष्कर्मियों के लिए कठोर दंड और त्वरित न्याय प्रणाली होनी चाहिए। फास्ट ट्रैक कोर्ट में मामले जल्द से जल्द निपटाए जाएं, ताकि अपराधियों में भय बना रहे।
3. नैतिक और यौन शिक्षा अनिवार्य हो
स्कूलों में नैतिक शिक्षा और यौन शिक्षा को अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि बच्चों को सही जानकारी मिले और वे अपने अधिकारों और सुरक्षा के बारे में जागरूक रहें।
क्या किया जा सकता है?
परिवार का कर्तव्य:
- बच्चों को अच्छे संस्कार दें।
- बेटों को महिलाओं का सम्मान करना सिखाएं।
- बच्चों के मोबाइल और इंटरनेट के उपयोग पर नजर रखें।
- बच्चों से खुलकर बात करें और उनकी समस्याएँ सुनें।
समाज की जिम्मेदारी:
- पीड़ितों के प्रति सहानुभूति रखें, उन्हें दोष न दें।
- गलत चीज़ों के खिलाफ आवाज़ उठाएं।
- अपराधियों को बचाने के बजाय उनके खिलाफ कड़ा रुख अपनाएं।
सरकार की भूमिका:
- कड़े कानून बनाए और सख्ती से लागू करे।
- अपराधियों को सजा देने की प्रक्रिया तेज करे।
- स्कूलों में नैतिक और यौन शिक्षा अनिवार्य करे।
निष्कर्ष
दुष्कर्म जैसी घटनाएँ सिर्फ कानून व्यवस्था की कमजोरी की वजह से नहीं बढ़ रही हैं, बल्कि समाज की मानसिकता में आई गिरावट इसका सबसे बड़ा कारण है। मोबाइल, इंटरनेट, टीवी और फिल्मों का बढ़ता नकारात्मक प्रभाव, पारिवारिक माहौल में संस्कारों की कमी और समाज की उदासीनता ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है।
अगर हमें अपने समाज को सुरक्षित बनाना है, तो इसकी शुरुआत हर व्यक्ति को खुद से करनी होगी। माता-पिता को बच्चों को अच्छे संस्कार देने होंगे, सरकार को कानून व्यवस्था मजबूत करनी होगी, और समाज को महिलाओं के प्रति सोच बदलनी होगी। तभी हम एक सुरक्षित और सभ्य समाज का निर्माण कर पाएंगे।
NGV PRAKASH NEWS
