सच्ची घटना पर आधारित -दर्दनाक कहानी..

NGV PRAKASH NEWS संक्षिप्त कहानी..


📰 सच्ची कहानी: नोटबंदी की रात से शुरू हुआ षड्यंत्र… एक मासूम और बहू की जिंदगी पर टूटा रिश्तों का पहाड़

(मानव जीवन पर आधारित विशेष रिपोर्ट)

कभी इस परिवार को देखकर लोग कहा करते थे — “क्या गजब की एकता है… कितना सुसंस्कृत और समृद्ध घर है।”
एक ही छत के नीचे तीन पीढ़ियां रहती थीं — सास-ससुर, दो बेटे, दो बहुएं और दोनों बेटों के एक-एक नन्हे-नन्हे बेटे। पिता एक राजपत्रित अधिकारी के पद से रिटायर हुए थे और अपने जीवन में वैध-अवैध सब मिलाकर करोड़ों की संपत्ति का साम्राज्य खड़ा कर चुके थे। घर में पैसा था, रुतबा था और दिखने में परिवार खुशहाल भी।

🌑 8 नवंबर 2016 — वो रात जिसने सब कुछ बदल दिया

8 नवंबर 2016 की शाम जैसे इस घर की खुशियों में तूफान आ गया। नोटबंदी की घोषणा होते ही घर में रखा काला धन संकट में पड़ गया। उस समय परिवार में नई-नई आई बड़ी बहू — जिसने प्रेम और अरेंज का संगम कहे जाने वाले विवाह से बड़े बेटे से शादी की थी — ने अपने शातिर दिमाग से खेल बदल दिया। उसने घर में रखे करोड़ों रुपये अपने और रिश्तेदारों के नाम पर बैंकों में जमा करवा दिए। रुपये डूब न जाएं, इस डर से परिवार के मुखिया ने उसे घर की कमान सौंप दी। और यहीं से शुरू हुआ असली खेल — सत्ता और लालच का।


💍 देवर की शादी और ‘नई मोहरे’ का आगमन

इसी बीच बड़ी बहू की परिचित की एक सीधी-सादी लड़की की शादी छोटे बेटे से तय हुई। बड़ी बहू को लगा — “यह तो हमारे इशारों पर नाचेगी।”
शादी हो गई। नई देवरानी ससुराल पहुंची तो उसे एक अलग ही दुनिया मिली — घर के सारे कामों का बोझ, और ऊपर से जेठानी जो नौकरी की तैयारी और पेपरों के बहाने अक्सर बाहर घूमती रहती थी।

लोगों के बीच यह बातें थीं कि जेठानी का शादी से पहले कई लड़कों से अफेयर था, लेकिन इस घर की संपन्नता देखकर उसने बड़े बेटे से रिश्ता जोड़ लिया और परिवार के खिलाफ जाकर शादी की।


👶 दो बच्चों का जन्म, पर प्यार में भेदभाव

समय बीतता गया। पहले जेठानी को बेटा हुआ, फिर एक साल बाद देवरानी को भी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। लेकिन सास-ससुर का सारा स्नेह, सारा मान-सम्मान बड़े बेटे के बच्चे के लिए था। छोटा पोता मानो अदृश्य हो गया था। परिवार का झुकाव बड़े बेटे की ओर और ननिहाल का प्यार छोटे पोते की ओर बढ़ता गया।

⏩ यहां सबसे खास बात यह है कि एक आप अपने दो बेटों में ही भेदभाव करता था, जहां बड़े बेटे को वह सब कुछ मानता था वही छोटी बेटी को एक -एक रूपये के लिये परेशान रहता था |

लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। जब छोटा बेटा मात्र छह वर्ष का था, तभी उसके पिता की सड़क दुर्घटना में असमय मृत्यु हो गई। यह हादसा उस मासूम और उसकी मां पर पहाड़ बनकर टूटा। घर में शोक था, पर अजीब बात यह थी कि बड़े बेटे की पत्नी की आंखों में कभी किसी ने आंसू नहीं देखे।


🧠 षड्यंत्र की जड़ें गहरी होती गईं

छोटी बहू जब अपने मायके बच्चों समेत गई, तब बड़े बेटे और बड़ी बहू ने सास-ससुर के कान भरने शुरू कर दिए। झूठ को इतनी बार कहा गया कि वह सच जैसा लगने लगा। एक महीने बाद जब छोटी बहू वापस लौटी, तो घर का माहौल पूरी तरह बदल चुका था। चेहरे बदल चुके थे, बातें ठंडी पड़ चुकी थीं, और आरोपों का सिलसिला शुरू हो चुका था।

उसके मायके में होने वाले सत्संग तक का मज़ाक उड़ाया गया — “हमारे यहां अगरबत्ती तक नहीं जलती और उधर पूजा-पाठ चल रहा है!”
इतना ही नहीं, बेटे की मृत्यु के कुछ ही दिनों बाद बड़े बेटे ने अपने बेटे का जन्मदिन ननिहाल में धूमधाम से मनाया और घर में शोक का दिखावा करता रहा।


💔 मानवता भी भूल गया परिवार

धीरे-धीरे परिवार ने छोटी बहू और उसके बच्चे से नाता तोड़ना शुरू कर दिया। बच्चे को, जिसे अब सबसे ज़्यादा प्यार और सहारे की ज़रूरत थी, उसे भी उपेक्षा का शिकार बनाया गया। छोटे बेटे की मौत को छह महीने भी नहीं बीते थे कि बड़े बेटे और बहू दशहरे का त्योहार शॉपिंग मॉल में हंसी-ठिठोली में मनाते दिखे।

सास-ससुर को यह विश्वास था कि बड़ा बेटा और बहू उनके दुख में शामिल हैं। लेकिन उन्हें क्या पता था — यही लोग उनकी आंखों में धूल झोंक कर बाहर पार्टियां कर रहे थे।


🕊️ छोटी बहू टूटी… पर उसका मन बड़ा रहा

दिन-ब-दिन आरोप, ताने और अलगाव बढ़ता गया। छोटी बहू गहरे अवसाद में चली गई। अंततः उसके पिता ने उसे अपने घर ले जाकर संभाला। बेटा वहीं से स्कूल जाने लगा। उधर, बड़े बेटे और बड़ी बहू को खुली छूट मिल गई — घर में दिखावटी शोक, बाहर मौज।

जो व्यक्ति अपने जीवन में करोड़ों की संपत्ति और रुतबा कमाया, वही व्यक्ति अपने बड़े बेटे-बहू की चालों में इस तरह फंस गया कि अपनी ही बहू और पोते के साथ अन्याय कर बैठा।

लेकिन इन सब दुखों, उपेक्षा और साज़िशों को सहने के बावजूद छोटी बहू ने अपने दिल में कड़वाहट के लिए जगह नहीं बनाई। उसने इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया… और आज भी दूर रहकर अपने सास-ससुर की दीर्घायु और कुशलता की कामना करती है। यही एक सच्चे चरित्र और त्याग की पहचान है — जहां बदले की भावना नहीं, बल्कि संस्कार बोलते हैं।


यह कहानी किसी उपन्यास की नहीं, एक सच्चे परिवार की है — जहां नोटबंदी की एक रात ने रिश्तों की नींव हिला दी, और लालच, सत्ता और झूठ ने एक मासूम और एक स्त्री का जीवन तोड़ डाला।
रिश्तों की गर्माहट धीरे-धीरे साज़िशों की ठंड में खो गई… पर एक बहू का हृदय आज भी संस्कारों से भरा है।

आज भी वह उस परिवार के कल्याण की कामना करती हुई अपने बच्चों को संस्कार और शिक्षा देने में लगी है..

जीवन एक संघर्ष है और अंत तक संघर्ष कर मुस्कुराते रहना ही एक कला है..

📝 NGV PRAKASH NEWS


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