संविधान जलाने की बात क्यों कह दी थी बाबासाहेब ने?


पढ़िए डॉ. अंबेडकर से जुड़ी 25 बातें जो हर भारतीय को जाननी चाहिए
(14 अप्रैल 2025 | भीम जयंती विशेष प्रस्तुति)
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Gyan Prakash Dubey


संविधान को जलाने की बात क्यों कही थी बाबासाहेब ने? जानिए डॉ. बीआर अंबेडकर से जुड़ीं 25 अनसुनी लेकिन बेहद अहम बातें

14 अप्रैल 2025
आज भारत एक ऐसे महामानव की 135वीं जयंती मना रहा है, जिसने न सिर्फ संविधान रचा, बल्कि करोड़ों वंचितों को आवाज भी दी। मध्यप्रदेश के महू में 14 अप्रैल 1891 को जन्मे डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर सिर्फ संविधान निर्माता नहीं थे, बल्कि एक दूरद्रष्टा नेता, समाज सुधारक, कानूनविद्, अर्थशास्त्री, लेखक, विचारक, और दलितों के मसीहा थे।
अंबेडकर जयंती को ‘भीम जयंती’, ‘समानता दिवस’ और ‘अंबेडकर स्मृति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। बाबासाहेब का जीवन सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि एक आंदोलन की गाथा है। पढ़िए उनसे जुड़ी 25 बेहद रोचक और प्रेरणादायक बातें—


1. संविधान को जलाने की बात क्यों कही थी?
1953 में राज्यसभा में बहस के दौरान बाबासाहेब ने कहा था – “मैंने भले ही संविधान लिखा हो, लेकिन इसे जलाने वाला पहला व्यक्ति भी मैं हो सकता हूं।”
उनका यह बयान तब आया जब बहस अल्पसंख्यकों के अधिकारों और राज्यपाल की शक्तियों पर चल रही थी। उन्होंने कहा – “अगर बहुसंख्यक अल्पसंख्यकों को कुचल देंगे, तो ये संविधान किसके लिए है?”
बाद में 1955 में उन्होंने इसका उदाहरण देते हुए कहा – “अगर किसी मंदिर में भगवान की जगह राक्षस बस जाएं, तो वह मंदिर नष्ट कर देना ही बेहतर है।”
बाबासाहेब के इस विचार में लोकतंत्र की आत्मा छिपी है – संविधान कितना भी अच्छा हो, अगर उसे लागू करने वाले ईमानदार और निष्पक्ष न हों, तो वह व्यर्थ हो जाता है।


2. गांधी से क्यों नहीं बनती थी?
डॉ. अंबेडकर और गांधी दोनों समाज सुधारक थे, लेकिन उनके रास्ते अलग थे। गांधी वर्ण व्यवस्था के भीतर छुआछूत मिटाना चाहते थे, जबकि अंबेडकर पूरी जाति व्यवस्था का खात्मा चाहते थे।
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में अंबेडकर ने साफ कहा था – “मैंने कभी गांधी को महात्मा नहीं माना।”
गांधी जहां गांव की अर्थव्यवस्था की बात करते थे, वहीं अंबेडकर शहरों को तरक्की का रास्ता मानते थे।


3. अपने युग के सबसे पढ़े-लिखे व्यक्तियों में से एक
32 से ज्यादा डिग्रियों के मालिक बाबासाहेब ने अमेरिका, इंग्लैंड और भारत की शीर्ष संस्थाओं से पढ़ाई की थी। वे एलफिंस्टन कॉलेज में पढ़ने वाले पहले दलित छात्र थे।


4. किताबों के दीवाने थे
उनके पास जीवन के अंत तक 35,000 से अधिक किताबों का विशाल संग्रह था। वे दिन-रात पढ़ाई में डूबे रहते थे।


5. बागवानी का शौक और दोस्तों को खुद खाना परोसने की आदत
बाबासाहेब को फूल-पौधों और अपने पालतू कुत्ते से बेहद लगाव था।


6. पिता की 14 संतानें, लेकिन पढ़ाई का मौका सिर्फ अंबेडकर को मिला
ब्रिटिश आर्मी में सूबेदार रहे उनके पिता की कोशिशों से बाबासाहेब को स्कूल जाने का मौका मिला, वरना उस समय दलितों के लिए यह असंभव था।


7. कबीर, फुले और बुद्ध से थे प्रेरित
बाबासाहेब के विचारों की नींव सामाजिक न्याय और समानता पर थी।


8. असली नाम ‘अंबावाडेकर’ था
स्कूल के एक ब्राह्मण शिक्षक ने अपना उपनाम ‘अंबेडकर’ उन्हें दे दिया।


9. 15 साल की उम्र में 9 साल की रमाबाई से विवाह
तब बाल विवाह आम बात थी।


10. अमेरिका में पढ़ाई संभव हुई गायकवाड़ की स्कॉलरशिप से


11. दुनिया के कई संविधान पढ़े, भारत का संविधान रचा


12. छुआछूत के खिलाफ आंदोलन और मनुस्मृति दहन
1927 में महाड़ में सत्याग्रह, 1930 में कालाराम मंदिर आंदोलन और मनुस्मृति दहन जैसे साहसी कदम उठाए।


13. लेबर पार्टी बनाई, राज्यसभा से दो बार सांसद रहे


14. चाहते थे अंग्रेज धीरे-धीरे जाएं ताकि दलितों के हक सुरक्षित रह सकें


15. हिंदू कोड बिल पर इस्तीफा दिया
महिलाओं को अधिकार दिलाने की लड़ाई संसद में लड़ी।


16. कई गंभीर बीमारियों से जूझते रहे


17. अक्टूबर 1956 में लिया बौद्ध धर्म का दीक्षा
14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया। यह सिर्फ धर्म परिवर्तन नहीं था, बल्कि सामाजिक क्रांति की शुरुआत थी।


18. संविधान लागू होने पर भी कहा – “यह तभी सफल होगा जब इसे चलाने वाले अच्छे होंगे।”


19. नागपुर के ‘शांतिवन’ में संरक्षित हैं उनकी यादें और अस्थियाँ


20. दो बार लोकसभा चुनाव में हार


21. अंबेडकर जयंती पर सरकारी छुट्टी, लेकिन राष्ट्रीय अवकाश नहीं


22. कांग्रेस के नाम बदलो विधेयक का किया विरोध


23. 6 दिसंबर 1956 – निर्वाण दिवस
बाबासाहेब ने 6 दिसंबर 1956 को अंतिम सांस ली। यह दिन ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।


24. जीवित रहते हुए ही ‘बोधिसत्व’ की उपाधि मिली


25. भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में अहम भूमिका निभाई


बाबासाहेब सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि विचारों की मशाल थे।
उन्होंने हमें संविधान ही नहीं, आत्म-सम्मान और अधिकारों की चेतना भी दी।
आज जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं, सामाजिक न्याय की बात करते हैं, तो उसकी नींव में बाबासाहेब की दूरदृष्टि बसती है।

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