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Gyan Prakash Dubey
इज़रायल-ईरान युद्ध से भारत को होने वाली संभावित चुनौतियाँ
नई दिल्ली – मध्य पूर्व में बढ़ते तनाव और इज़रायल और ईरान के बीच युद्ध की संभावना ने वैश्विक मंच पर चिंता बढ़ा दी है। अगर यह संघर्ष व्यापक रूप लेता है, तो भारत को भी इसके कई मोर्चों पर दुष्प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं।
- तेल की कीमतों में उछाल
मध्य पूर्व, विशेष रूप से ईरान, दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक क्षेत्रों में से एक है। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए बड़े पैमाने पर आयात पर निर्भर है। युद्ध की स्थिति में कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है, जिससे भारत में तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। इसका सीधा असर महंगाई और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। - प्रवासियों और श्रमिकों की सुरक्षा
लाखों भारतीय नागरिक खाड़ी देशों में काम करते हैं। इज़रायल और ईरान के बीच युद्ध की स्थिति में उनके जीवन और रोजगार पर भी खतरा मंडरा सकता है। यदि संघर्ष बड़े पैमाने पर फैलता है, तो भारतीय श्रमिकों की सुरक्षा के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने पड़ सकते हैं, और बड़े पैमाने पर वापसी की संभावना हो सकती है। - व्यापार और आर्थिक सहयोग में गिरावट
भारत और इज़रायल के बीच रक्षा, कृषि, और विज्ञान के क्षेत्रों में मजबूत व्यापारिक संबंध हैं। युद्ध की स्थिति में इन समझौतों और साझेदारियों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। इसके अलावा, भारत और ईरान के बीच भी व्यापारिक संबंधों में गिरावट आ सकती है, विशेष रूप से चाबहार बंदरगाह परियोजना जैसे रणनीतिक महत्त्व के प्रोजेक्ट पर असर पड़ सकता है। - क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव
मध्य पूर्व में संघर्ष का प्रभाव न केवल आर्थिक बल्कि भू-राजनीतिक स्तर पर भी हो सकता है। पाकिस्तान और चीन जैसे देशों के कारण यह संघर्ष और जटिल हो सकता है। भारत को अपने राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीतिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पड़ सकती है, खासकर पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को देखते हुए। - रणनीतिक साझेदारियों पर असर
इज़रायल भारत का एक महत्वपूर्ण रक्षा साझेदार है, और ईरान के साथ भी भारत के रणनीतिक संबंध हैं। इस संघर्ष में भारत को संतुलित भूमिका निभानी होगी ताकि दोनों देशों के साथ उसके संबंध प्रभावित न हों। यह भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती होगी।
निष्कर्ष:
इज़रायल-ईरान युद्ध भारत के लिए आर्थिक, सुरक्षा, और कूटनीतिक मोर्चों पर गहरी चुनौतियाँ ला सकता है। इसके लिए सरकार को सतर्क रहकर अपनी विदेश नीति और आंतरिक आर्थिक रणनीतियों पर ध्यान देने की जरूरत होगी ताकि संभावित संकटों से निपटा जा सके।